Tuesday, 2 June 2015

काकभुशुण्ड और वित्तमंत्री : शरद जोशी

(अभी एक जून, 2015 से बढ़े हुए करों का नया दौर शुरू हो गया है. यह मोदी सरकार का ‘अच्छे दिनों की आस’ लगाए बैठी परेशान और पस्त जनता को मोदी सरकार का एक और ‘तोहफा’ है. यह सरकार पिछले साठ सालों में जो कुछ हुआ उससे बेहतर होने का दावा करती है, लेकिन शरद जोशी का यह व्यंग्य, जो उन्हीं पिछले साठ सालों में से किसी एक साल के लिए लिखा गया था, इस साठोत्तरी राजनीति के ऊपर भी यदि अपनी प्रासंगिकता जाहिर करता है. तो साफ है साठोत्तरी का दावा जुमलेबाजी भर है...माडरेटर)


एक राज्य का नया वित्तमंत्री काकभुशुण्ड जी से मिलने गया और हाथ जोड़ कर बोला कि मुझे शीघ्र ही बजट प्रस्तुत करना है मुझे मार्गदर्शन दीजिए. तिस पर काकभुशुण्ड ने जो कहा सो निम्न लिखित है.

हे वित्तमंत्री, जिस प्रकार कैक्टस की शोभा काँटों से और राजनीति लम्पटों से जानी जाती है उसी प्रकार वित्तमंत्री विचित्र करों तथा ऊलजजूल आर्थिक उपायों से जाने जाते हैं. पर-पीड़ा वित्तमंत्री का परम सुख है. कटोरी पर कर घटा थाली पर बढ़ाने, बूढों पर कर कम कर बच्चों पर बढ़ाने और श्मशान से टैक्स हटा दवाईयों पर बढ़ाने की चतुर नीति जो बरतते हैं वे ही सच्चे वित्तमंत्री कहाते हैं. हे वित्तमंत्री, बजट का बुद्धि और ह्रदय से कोई सम्बन्ध नहीं होता. कमल हो या भौंरा, वेश्या अथवा ग्राहक, गृह अथवा वाहन तू किसी पर भी टैक्स लगा, रीढ़ तो उसी की टूटेगी जिसकी टूटनी है. हर प्रकार का बजट हे वित्तमंत्री! मध्यम वर्ग को पास देने का श्रेष्ठ साधन है. यह तेरे लिए कुविचारों और अधम चिंतन का मौसम है. समस्त दुष्टात्माओं का ध्यान कर तू बजट की तैयारी में लग. सरकारी कर का पेट्रोल बढ़ाने के लिए तू हर गरीब की झोपड़ी में जल रहे दीये का तेल कम कर. अपने भोजन की गरिमा बढ़ाने के लिए हर थाली से रोटी छीन. जिसके रक्त से तेरे गुलाबों की रक्तिमा बढ़ती है उस पर टैक्स लगने में मत चूक.

करों की सीमा जल थल और आकाश है. तू चर-अचर पर कर लगा, जीवित और मृत पर, स्त्री-पुरुष पर , बालक-वृद्ध पर, ज्ञात-अज्ञात पर, माया और ब्रह्म के सम्पूर्ण क्षेत्र पर जहां तक दृष्टि, सत्ता अथवा भावना पहुंचती है, कर लगा. श्रम पर, दान पर, पूजा-अर्चन पर, मानवीय स्नेह पर, मिलन पर, श्रृंगार पर, जल-दूध जैसी आवश्यकता पर, विद्या, नम्रता और सतसंग पर, कर्म, धर्म, भोग, आहार, निद्रा, मैथुन, आसक्ति. भक्ति, दीनता, शांति, कांति, ज्ञान, जिज्ञसा, पर्यटन पर, औषधि, वायु, रस, गंध,स्पर्श आदि जो भी तेरे ध्याँन में आए शब्दकोश में जिसके लिए शब्द उपलब्ध हों उस पर कर लगा. अच्छे वित्तमत्री करारोपण के समय शब्दकोश के पन्ने निरंतर पलटते रहते हैं और जो भी शब्द उय्पयुक्त लगता है उस पर कर लगा देते हैं. जूते से कफ़न तक, बालपोथी से विदेश यात्रा तक, अहसास से नतीजों तक तू किसी पर टैक्स लगा दे. तेरी घाघ दृष्टि जेबों पर है और हे वित्तमंत्री, जेबें सर्वत्र हैं!
हे वित्तमंत्री, ईमानदार और मेहनती वर्ग पर अधिक कर लगा, जिनसे वसूली में कठिनाई नहीं होगी. जो सहन कर रहा है उसे अधिक कष्ट दे. ऐयाश, होशियार और हरामखाऊ वर्ग पर कम कर लगा, क्योंकि वसूली की संभावनाएं क्षीण हैं. बदमाशों, सामाजिक अपराधियों और मुफ्तखोरों पर बिलकुल कर न लगा क्योंकि वे देंगे ही नहीं. श्रेष्ठ वित्तमंत्रियों के बजट पीड़ितों को पीड़ित करने के लिए होते हैं.

हे वित्तमंत्री! बजट को यौवन के रहस्य की तरह छुपा कर रख किसी को पता न लगे कि तू सोचता क्या है. बजट का खुलना भयानक संत्रास का क्षण हो. लोग तेरे वित्तमंत्री बनने पर पश्चाताप करें. जीवन से निराश हो जाएँ. यह सूझ न पड़े कि वर्ष कैसे बीतेगा? बजट एक हंटर है. माडर्न लोगों को, जिसने तुझे हंटर दिया, बजट एक कहर है, उसे बरपा कर दे. बजट एक अड़ंगा है जीवन की राह में. सच्चे वित्तमंत्री वे हैं जो बदनामी में मुस्कुराते हैं. सच्चा टैक्स वही है जो सुखी का सुख न बढ़ाये पर दुखी का दुःख दुःख दूना कर दे.

बजट समाज के प्रति तेरी घृणा की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम है उसे गर्व से प्रस्तुत कर. कष्ट में पहले से डूबे मनुष्य तेरा कुछ नहीं बिगड़ सकते वित्तमंत्री! स्वप्नों की इति ही बजट का अथ है- यह बात ध्यान रख.

इतना कह कर काकभुशुण्ड जी चुप हो गये और वित्तमंत्री अपना बजट बनाने चला गया.
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शरद जोशी,   
यत्र तत्र सर्वत्र, भारतीय ज्ञानपीठ से साभार.