Friday, 15 April 2016

एक प्रेम-पत्र


आज तुमसे मिलने की बहुत ख़ुशी थी. सिर्फ मिलने की ही, बस और कुछनहीं. वैसे तो मैं तुमसे रोज ही मिलता रहता हूँ. पर अकेले मिलना, जहाँ सिर्फ और सिर्फ तुम हो, उसकी बात ही कुछ अलग है. जब सबके सामने मिलते हो तो वहां सिर्फ तुम नहीं होते और लोग भी होते हैं. ऐसे में मैंजी भर कर तुम्हें महसूस नहीं कर पाता. एक दीवार सी खिंची रहती है हमारे बीच. अदृश्य दीवार जो दिखती तो नहीं पर बहुत मजबूत और कष्टदायी होती है. सोचा था आज मिलोगे तो तुम्हें जी भर कर देखूंगा. कुछ कहूँगा नहीं. कुछ बोलूँगा नहीं बस तुम्हे देखूंगा. तुम्हारे होने को, सिर्फ अपने लिए होने को महसूस करूँगा. तुम्हारी सुंदर सी आंखों में देखूंगा- एक चमक, एक ख़ुशी अपने लिए और तुम्हारे लिए भी. पर समय को यह मंजूर न था. तुम चले गए. और मैं तुम्हें तलाश करता रहा. सड़क पर, टेम्पों में. हाँ हर जगह मेरी बेचैन नजरें तुम्हें, सिर्फ तुम्हें खोजती रहीं. पर तुम कहीं नहीं दिखे. दिल की बेचैनीआँखोंके रास्ते बाहर आ रही थी. पर तुम बाहर नहीं थे. मेरे दिल में तो थे. पर मैं तुम्हें अपने दिल के बाहर भी देखना चाह रहा था. पर तुम दिखे नहीं. पता नहीं तुम क्या सोचेगे? मैं क्या बकवास लिख रहा हूँ. पर जो कुछ भी लिख रहा हूँ वह पूरे मन से लिख रहा हूँ. यह वही मन है जहाँ तुम ही तुम भरे हुए हो. कभी-कभी लगता है कि मेरी नसों में खून नहीं तुम बह रहे हो हो. हाँ, तुम! तुम्हें देखता हूँ तो अक्सर ऐसा लगता है कि तुम मेरे जैसा नहीं सोचते. इतना तो लगता है तुम मुझसे नफ़रत तो नहीं करते, पर तुम्हारे दिल में मैं नहीं हूँ. पता नहीं मैं सही हूँ या गलत? जानते हो जब तुम मुझे देख कर एक इस्माइल देते हो तो मेरा दिल बहुत खुश हो जाता है. हाँ बहुत, बहुत खुश. तुम्हारी यह मुस्कान बहुत हौसला अफजाई करती है मेरा. तुम्हारी इस मुस्कान को पाने के बाद मेरा पूरा का पूरा दिन कितना खूबसूरत हो जाता है. यह मैं बता नहीं सकता. मेरे पास इस ख़ुशी को बताने के लिए शब्द ही नहीं है. लेकिन क्या तुम जानते हो तुम्हारी एक छोटी सी उपेक्षा मुझे कितना दुःख देती है? मेरा पूरा वजूद ऐंठ जाता है. बिना पानी की मछली जैसे तड़पने लगता है. मुझे, मेरी इस धारणा पर शक भी होता है कि शायद तुम मेरी उपेक्षा नहीं करते हो. हो सकता है कि यह मेरा वहम हो. खैर, तुमने तो कह ही दिया है कि मेरी तरफ से यह पूरा एकतरफा मामला है. पर क्या तुम इसे दुरफा नहीं कर सकते? क्या तुम थोड़ी सी मुहब्बत मेरी फटी झोली में नहीं डाल सकते? तुम सोच भी नहीं सकते कि मैं तुम्हारी यादों से कितना भरा रहता हूँ. घर के हर एक कोने में सिर्फ तुम नजर आते हो. हाँ, सिर्फ तुम! हर बार कलेजे को मजबूत करता हूँ कि अब तुम्हें याद नहीं करूँगा. तुम्हें भूल जाऊंगा. अपने दिल को कब्रगाह बना कर उसमें तुम्हारी यादों को दफ्न कर दूंगा. पर हर बार नाकाम हो जाता हूँ. यह कर ही नहीं पाता. तुम्हें भूल ही नहीं पाता. ऐसा सोचते ही तुम्हारी याद और सताने लगती है. दिल और दिमाग फटने को हो आता है. आखिर क्यों इस कदर बस गए हो मेरे मन में! क्यों? तुम्हें दोष नहीं देता. पर कुछ तो तुमनेभी ऐसा किया होगा जिससे मैं तुम्हारी ओर खिंचा चला आया. क्या सचमुच तुमने कुछ भी नहीं किया? जाओ, मैं कहता हूँ कि तुमने वाकई कुछ नहीं किया. ये तो मेरा पागलपन है जो तुम्हें याद करके परेशान रहता हूँ. तुम भी तो यही कहते हो कि मैं ‘पगला गया हूँ.’ यह सब कुछ जो लिख रहा हूँ. उसे तुम मेरा पागलपन या मेरी बेवकूफी या नान्सेस कहोगे. कह सकते हो. तुम मुझे कुछ भी कह सकते हो. तुम्हें अगर  इतना भी कहने का हक़ नहीं दिया तो मेरे प्यार का मतलब ही क्या!
      अक्सर सोचता हूँ कि तुम्हें क्यों परेशान करूँ? क्या हक़ है मुझे कि तुम्हें बार-बार फोन करूँ! एसएमएस करूँ! सोचता भी हूँ कि अब से तुम्हें कोई भी फोन नहीं करूँगा. कोई एसएमएस नहीं करूँगा. पता नहीं तुम्हारा फोन कौन देख ले और बेवजह तुम्हारे ऊपर आफत आ जाए, मेरी वजह से. पर जैसे अपने हाथों पर, अपनी हाथ की उंगुलियों पर से मेरा नियंत्रण ही ख़त्म हो जाता है. और तुम्हें एसएमएस या मिसकालकर ही देता हूँ. न चाहते हुए भी. बार-बार फोन को उठा कर चेक करता हूँ कि तुम्हारा कोई संदेश तो नहीं आया है. लेकिन हर बार निराश हो जाता हूँ. चाहूँ तो फोन की सेटिंग में जाकर तुम्हारे नम्बर पर खास रिंगटोन सेट कर सकता हूँ. और इस तरह बार-बार फोन आने पर  इस उत्तेजना से मुक्त हो सकता हूँ कि कहीं तुम्हारा फोन तो नहीं आ रहा है. पर जानबूझ कर ऐसा नहीं करता. क्योंकि इस तरह एक भ्रम तो बना रहता है न कि कहीं तुम तो फोन नहीं कर रहे. इस भ्रम की, इस झूठी ख़ुशी की खातिर ही मैं तुम्हारे नम्बर पर कोई रिंगटोन नहीं सेट करता हूँ. जरा सोचो तुम्हारा काल्पनिक रूप से होना ही, मेरे लिए कितना मायने रखता है. पर क्या तुम हमेशा मेरे लिए काल्पनिक ही बने रहोगे? क्या मैं तुम्हें हकीकत में कभी महसूस नहीं कर पाऊंगा? यही एक बात है जो मुझे हमेशा डराती रहती है कि तुम मेरे लिए हमेशा एक ख्वाब ही रहोगे. एक ऐसा ख्वाब जो बहुत सुंदर है. पर आंखें खुलते ही झूठ हो जाता है. हकीकत नहीं रह जाता. क्या तुम इस ख्वाब को मेरे लिए, मेरी ख़ुशी के लिए हकीकत में बदल सकते हो? कहीं तुम ‘नहीं’ तो नहीं कहने वाले? प्लीज ऐसा मत कहना. नहीं तो मैं भी नहीं जनता मेरा हश्र क्या होगा?
बहुत कुछ सोचता हूँ. कई-कई एंगल से. तुम्हारी जिंदगी एक दम से उस सादी कापी की तरह है जिसपे अभी कुछ नहीं लिखा गया. उस पर इस खूबसूरत इंसानी जिंदगी की न जाने कितनी खूबसूरत लाईने लिखी जानी हैं. सोचता हूँ कहीं मैं इस प्लेन कापी को अपनी मुहब्बत से गंदा तो नहीं कर रहा? कहीं मैं आपकी जिंदगी की इस कापी के सफ़ेद पन्नों पर अपनी मुहब्बत की स्याही तो नहीं लीप रहा हूँ? मैं क्या कर रहा हूँ? मुझे खुद ही नहीं मालूम. क्या तुमइस बारे में मेरी मदत करोगे कि मैं यह जान पाऊं कि मैं हकीकत में कर क्या रहा हूँ?

      सच में आखिर कर क्या रहा हूँ मैं? हर दीवार पर हर चीज पर तुम्हारी यादें चिपकी हुई हैं. मैं कितना दूर भागूं? कहाँ चला जाऊं कि तुम्हारी इन यादों से बच सकूं? पर मुझे अपने ही ऊपर शक है कि क्या सचमुच मैं तुम्हारी इन यादों से दूर चला जाना चाहता हूँ? मुझे लगता है कि तुम्हारी ये यादें मुझे इतनी पसंद  हैं कि मैं इनसे दूर  जाना ही नहीं चाहता. बस केवल इन यादों में डूबे रहना चाहता हूँ. आजकल कुछ भी अच्छा नहीं लगता. नींद भी अच्छी तरह नहीं आती. क्या करूँ? बताओ न! अब ये मत कहना कि तुम्हें कुछ नहीं मालूम. कुछ तो बताओ न! मेरी इस बेचैनी का इलाज क्या है? इस दर्द की दवा क्या है? पहले तुम्हारा फोन आता था अब वो भी नहीं आता. क्यों? क्या तुम धीरे-धीरे मुझसे दूर हो रहे हो? कभी सोचा है ये दूरी किसी के दिल पे क्या असर करेगी? नहीं सोचा! तो प्लीज एक बार सोच कर देखो. एक बार, सिर्फ एक बार मेरी बेचैनी को अपने दिल में उतार कर देखो कि कैसा लगता है? कितना दर्द होता है. अच्छा, मेरी हर बात को मना क्यों कर देते हो? जब भी मना करते हो एक चाकू सा दिल पे चल जाता है और बहुत दर्द होता है. बहुत तड़प पैदा होती है. क्या कभी इस बात का ख्याल तुम्हारे मन में नहीं आया कि तुम्हारी जुबान से निकली कोई ऐसी बात जिसे तुम बहुत सामान्य समझते हो, किसी के लिए बहुत अधिक मायने रखती है. तुम सोच रहे होगे कि क्या बकवास आदमी है. फालतू की बकवास किए जा रहा है. इस व्हाट्सएप के ज़माने में भी फालतू टाईप का लव लेटर लिख रहा रहा है. वो भी इतना लम्बा-चौड़ा. पर क्या करूँ. इतनी बातें आराम से, ठीक से कहने का तुम मौका ही कहाँ देते हो? और जरूरी भी नहीं तुम अकेले में, फुर्सत से मिलो तो तुम्हें सब कुछ इतने सही तरीके से सीरियल वाईज कह सकूँ. हो सकता है तुम सामने हो तो कुछ कह ही न पाऊं. जो कहना चाहता हूँ. वो सब कुछ भूल जाऊं. पर मैं करूँ तो क्या करूँ? मैं इस दर्द से छुटकारा पाना चाहता हूँ. क्या तुम मेरी मदत करोगे? कहीं छोटा सा ही सही, मन में ये विश्वास दबा सा है कि शायद मुझ पर दया करके कुछ मेरी मदत कर ही दोगे......तुम्हारा pagallooooooooooooo.