Wednesday, 4 June 2014

विकास के खोल में सांप्रदायिक राजनीति




      लहर आते-आते सुनामी बन गई. अभी वह उफनाई हुई ही है. सुनामी जैसी लहरें अपने साथ तबाही का मंजर भी लाती हैं और जाते समय मनुष्य के द्वारा किए गए समस्त प्रयासों को मलबा बना कर छोड़ जाती हैं. 16 वीं लोकसभा के चुनावी परिणाम आने के बाद वाले दिनों में ऐसी तबाहियों को बर्दाश्त करने के लिए जनता को तैयार रहना चाहिए. हालांकि यह खतरा जिस चीज पर सवार है उसे जनमत या बहुमत कहा जा रहा है. जबकि एनडीए द्वारा हासिल इस तथाकथित बहुमत के अलावे वोटों का बड़ा हिस्सा इस बहुमत के खिलाफ है. हाल-ताज में संपन्न इस लोकतांत्रिक नाटक-नौटंकी में जिस तरह के खेल-तमाशे हुए वे छुपे तो नहीं रहे लेकिन वे इस चुनाव में सवाल की शक्ल भी नहीं ले सके. चुनाव कोलोकतंत्र का यज्ञकहा गया और यह बड़ी शर्मनाक बात रही कि करोड़ों लीटर शराब भी इस यज्ञ में हविष्य बनी. एक आंकड़े के अनुसार इस चुनाव में इतनी बड़ी मात्रा में शराब बरामद हुई कि उससे ओलम्पिक में इस्तेमाल होने वाले चार सौ तरण-ताल भरे जा सकते हैं. आयोग के पास यह आंकड़ा शराब की उस मात्रा को लेकर है जो बरामद हुई है और कितनी शराब की मात्रा उदरस्थ हो कर इस लोकतांत्रिक यज्ञ-कर्ताओं के पुण्य में तब्दील हो गई होगी, अनुमान ही लगाया जा सकता है.बड़ी-बड़ी करोड़ी रैलियों की रेलपेल, हाईटेक चुनाव सामग्री के इस्तेमाल,सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और पूंजीवाद के सरगना अमरीका की महंगी चुनावी प्रचार शैली की नक़ल की दृष्टि सेचर्चित यह चुनाव क्यूँ और कैसेयज्ञजैसे पोंगा-पंथी धार्मिक कर्मकांड के प्रतीक से अभिहित किया गया. इस पर भी विचार करने की जरूरत है. जाहिर है ऐसे प्रतीक से इस चुनाव को अभिहित करने के पीछे उस मानसिकता की छाप है जिसका प्रचार आरएसएस जैसे संगठन लगातार करते रहे हैं. नरेंद्र मोदी द्वारा संसद की सीढ़ियों पर मत्था टेकना इस आशंका को बल देता है कि आने वाले दिनों में कहीं संसद को पूर्णतयामंदिर बना दिया जाए. पहले भी बीजेपी के नेतृत्व में बनी सरकारें इस तरह की हरकतें करती रही हैं अभी भी बहुत से लोगों को यह बात याद होगी कि एक बार उमा भारती द्वारा मध्य प्रदेश की विधान सभा में बलात्कारी बापू के प्रवचन सरकारी खर्चे पर करवाये गए थे. मीडिया में मोदी के संसदीय मत्था-टेक को बड़े ही भावुक तरीके से पेश किया गया और आडवानी के पैर छूते ही मोदी के संस्कारवान होने का सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया गया मानो जूतम-पैजार वाली संसद को ऐसे ही संस्कारी शिशु मंदिरिया बच्चे की प्रबल आवश्यकता थी जो मोदी के आते ही पूरी होनी शुरू हो गई. दरअसल मोदी की ये सारी हरकतें लंतरानी से अधिक नहीं हैं. मोदी अपनी इन हरकतों से हिंदुत्व की लहर में बह रहे तथाकथित बहुमत तक यह संदेश पहुँचाना चाहते हैं कि उन्हों ने बिलकुल सही व्यक्ति का चुनाव किया है. कुल मिला कर यह आदर्श हिंदू की छवि बनाने की कोशिश है. छवि निर्माण की इस योजना में शामिल एक खबरिया चैनल (न्यूज 24) ने तो काफी जोशोखरोश के साथ एक वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री) 16 मई, 2014को मोदी और उनकी मां पर केन्द्रित करके दिखाई. जिसमें चुनावी विजय के बाद मोदी द्वारा अपनी मां से आशीर्वाद लेने गए थे और बिलकुल उन्हें शिशु मंदिरों में बच्चों को पढाये जाने वाले पाठमां का आज्ञाकारी बालकजैसा प्रस्तुत किया गया. इस वृत्तचित्र में ममता और मातृभूमि को एकाकार वंदेमातरम का पूरा रूपक ही रच दिया गया तथा मोदी के पक्ष में उत्पन्न राजनितिक परिस्थिति को भगवा इमोशनल टच देने की कोशिश की गई. वस्तुत: यह सब विकास पुरुष की लीला है. चूँकि ये लीलाएं हैं अत: इनका मिथ्यात्व स्पष्ट है. आखिर विकास के नारे के साथ सोलहवीं लोकसभा के परिदृश्य पर आने वाले विकास-पुरुष को इस लीला की जरुरत ही क्या है जब विकास रूपी मोहपाश उसका सिद्ध अस्त्र हो? जरुरत है...क्योंकि उसके पास विकास का कोई सिद्ध अस्त्र नहीं है. इसीलिए उसे इस छल-छद्म की जरुरत है.यदि आप मोदी के पूरे चुनाव अभियान पर गौर करें तो पाएंगे कि उसमें ऐसी भाषा और रणनीतियों का इस्तेमाल किया गया जिसे प्रच्छन्न तरीके से ध्रुवीकरण संभव हो सके. आखिरभारत विजय’, ‘हर-हर मोदीजैसे नारे क्या इंगित करते हैं.भारत विजय, हर-हर, ‘विजय निष्कंटक यज्ञऔर चुनाव के दौरान अधिकांशत: मोदी द्वारा पीले-नारंगी वस्त्र या उसे मिलते-जुलते रंग वाले वस्त्रों का इस्तेमाल आदि...आदि सबमें एक महीन अंत:सूत्र निहित है और इस सूत्र की पहचान कठिन नहीं है.