Friday, 24 May 2013

ग्लैमर के ताज़ा संसार में -महेश्वर


(जन संस्कृति मंच के महासचिव रहे कवि महेश्वर की कविता में मुक्तिबोध-गोरख पांडे की जनवादी परंपरा की गहरी छाप दिखाई देती है। महेश्वर उस निर्भीक काव्यधारा  के कवि हैं जिसका उद्गम स्थल कबीर की कविताई है। अपने समय को स्थानीय/वैश्विक सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में चीन्हना उनकी सुलझी हुई रचना दृष्टि की तरफ संकेत करता है।)


पैसे की कीली पर
नाचती हुई दुनिया में
किसी भी क्षण तुम्हें
हो जाना चाहिए
उरुग्वे राउंड के समापन पर
उठा हुआ हथौड़ा
या मनमोहन सिंह के भेजे से बड़ा पग्गड़
प्रणव मुखर्जी की उच्चारण-भ्रष्ट अंग्रेजी
हर्षद मेहता का रहस्यमय पिटारा
या, दाऊद इब्रहीम की सलोनी रखैल...
आखिरकार
कोई कैसे कर सकता है प्रेम
अगर समंदर जैसे दिल में
केल्विनेटर फ्रिज जितनी भी जगह न हो
कभी सुना है
की प्रेम के बनाते हों आमलेट
या
साफ्ट ड्रिंक कन्सेन्ट्रेट
ज़िन्दगी का होज्जाए चक्का जाम
अगर तुम्हारा ज़मीर
न पिये कैलटेक्स का मोबिल आयल
कभी अपने गिरेबान में झांक कर देखो तो
सही
की एक अदद रेनाल्ड्स बालपेन के सामने
एक अदने इंसान की हैसियत ही क्या है...
घिसा-पिता चीथड़ा हो तुम
अगर कीमत को छोड़कर
मूल्यों की बात करते हो
घोकते हो ज़्यादा तकनीक से तहज़ीब
कुछ तो लिहाज़ करो
वक्त की नज़ाकत का
सीखन तो शुरू करो घर बेच कर मकान
कमाने का सलीका
सुनो-गुनो-धुनो
कि उपयोग की स्पेलिंग
इम्पोर्टेड जिन्सों से ज्यादा इम्पार्टेन्ट नहीं है
जिस्म और रूह का रिश्ता
और जहां तक तुम्हारे होने का ताल्लुक है
उससे कहीं ज्यादा चमकदार है
रूपर्ट मर्डोक जैसों का
होठों में छुपा कोई मल्टीनेशनल दांत...
झटककर समझदारी के खिलाफ़
उस एक अदद चिरकुट गंवार हिन्दुस्तानी
मुहविरे का खौफ़
आखिर कब समझोगे
कि ग्लैमर के ताज़ा संसर में
पिद्दी से ज़्यादा
बिकाऊ है पिद्दी का शोरबा
और
कसम पीवी नरसिम्ह राव की
आदमी से ज़्यादा जरूरी है-दलाल...
कहो, कि-कभी नहीं...!
कहो, कि-कभी नहीं...!
चुप क्यों हो?
बोलते क्यों नहीं
बोलते क्यों नहीं, ऐ मेरे लोगों?
बोलो तो सही, ऐ भले लोगों!!
        (समकालीन जनमत, जुला॰-सितम्ब॰ 2002)

1 comment:

  1. साथी राजन आपका बहुत आभार जो आपने बेहद महत्वपूर्ण कवि को पढ़ने का मौका मुहैया कराया ..........महेश्वर की कविता एक ऐसा तूफान है जो साम्राज्यवाद तथा पूंजीवाद की चूल भले न उखाड़ सके पर हुलसा जरूर देती हैं ......तीर से भी तेज धार है उनकी भाषा में यह भाषा आसमान से नहीं टपकती बल्कि जनता के साथ उनके संघर्ष में शामिल होने से मिलती है .........सुनील

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