(प्रदीप सिंह आइसा और जसम के सक्रिय सहयोगी रहे
हैं। पत्रिकाओं में उनकी जो भी कविताएं छपी हैं, उनकी चर्चा
देर तक हुई है। फिलहाल
फ़तेहपुर में एक माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक हैं।)
आदिवासी
उन्हें नहीं दी गई
बिजली,
पानी, सड़क
नहीं दिया गया कभी
पेट भर भोजन
वे चुप रहे
जब तक वे चुप रहे
तब तक आदिवासी थे।
छीन ली गई उनसे
उनकी जमीन, उनका जंगल, उनकी इज्जत
और जब वे बोले उसके खिलाफ
तो नक्सलवादी हो गए।
सरकार के अत्याचार सहना
आदिवासी होना है
और उसके खिलाफ खड़े होना
नक्सलवादी।
ताबूत
हम बनाते हैं सरकार
सरकारें हमारे लिए
बनाती हैं ताबूत
उसमें ठोंकती हैं कील
आहिस्ता-आहिस्ता
इस तरह ज़िंदा ही
दफन कर दिए जाते हैं हम
अपनी ही बनाई सरकार द्वारा
घुट-घुट कर मरने के लिए।
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